परियोजना कार्य
विषय:-- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का व्यक्तित्व और कृतित्व।
वर्ग ----- दशम
सामान्य निर्देश -----
1- प्रस्तुत परियोजना कार्य स्टैंडर्ड साईज पेपर में किया जाएगा।
2- इस कार्य के लिए कम-से-कम 8 पेज होंगे।
3-अगर 8 पेज में दिया गया कार्य पूरा नहीं होगा तो छात्र अलग से अतिरिक्त पेज जोड़ सकते हैं।
4-प्रयोग में लाए गए पेज पर पेज नंबर अवश्य लिखें।
5-परियोजना कार्य पूरा होने पर पेपर को तीन स्थानों पर (उपर, नीचे तथा बीच में) स्टेपलर के माध्यम से जोड़ दें।
6- (क)प्रथम पेज पर निम्नलिखित बातों को लिखें -
विद्यालय का नाम:-
सत्र :-
छात्र का नाम :-
वर्ग :- खण्ड:-
विषय:- हिन्दी परियोजना कार्य।
शीर्षक:- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का व्यक्तित्व एवं कृतित्व।
शिक्षक का नाम :-
(ख) पेज नंबर2 खाली रहेगा।
(ग) पेज नंबर-3 पर प्रस्तावना लिखें।
(घ) पेज नंबर-4 पर आभार एवं अभिप्रेरणा।
आभार एवं अभिप्रेरणा।
मैं अपने शिक्षक (शिक्षक का नाम) के प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे इस परियोजना के लिए प्रेरित किया। उनकी सहायता और प्रोत्साहन के बिना इस परियोजना का सफल होना संभव नहीं था। मैं अपने प्रधानाध्यापक जी (प्रधानाध्यापक का नाम) का आभारी हूँ। उन्होंने मुझे अनुसन्धान करने और इस अद्भुत परियोजना को पूरा करने का अवसर दिया। मैं अपने माता पिता को धन्यवाद कहता हूँ। उन्होंने मुझे इस परियोजना को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया। मैं अपने साथ के सभी विद्यार्थियों को धन्यवाद कहता हूँ। उन्होंने इस परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा करने में मेरी मदद करी।
(च) पेज नंबर-5 पर विषय-सूची लिखें।
- निराला' का परिचय
- निराला जी का व्यक्तित्व (जीवन परिचय)
- निराला जी का कृतित्व (रचना तथा प्रत्येक रचना के विषय में जानकारी देनी है)
(छ) पेज नंबर-6 पर निराला जी का व्यक्तित्व (जीवन परिचय) लिखें।
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २१ फ़रवरी, सन् १८९९ में हुआ था।[1] वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई।[2] उनका जन्म मंगलवार को हुआ था। जन्म-कुण्डली बनाने वाले पंडित के कहने से उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। उनके पिता पंडित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे।
निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बाङ्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया, संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में १५ अक्टूबर १९६१ को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की।
(ज) पेज नंबर-7 पर निराला जी का कृतित्व (रचना तथा प्रत्येक रचना के विषय में जानकारी देनी है)
काव्य संग्रह
निराला के प्रसिद्ध काव्य संग्रह हैं- अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, अर्चना, अराधना, गीत कुंज, सांध्य काकली, अपरा।
उपन्यास
निराला ने अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, कुल्ली भाट जैसो उपन्यास लिखे हैं।
निराला की प्रसिद्ध कविताएं
- अभी न होगा मेरा अन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
- वसन्त की परी के प्रति
आओ, आओ फिर, मेरे बसन्त की परी
छवि-विभावरी
सिहरो, स्वर से भर भर, अम्बर की सुन्दरी
छबि-विभावरी
बहे फिर चपल ध्वनि-कलकल तरंग
तरल मुक्त नव नव छल के प्रसंग
पूरित-परिमल निर्मल सजल-अंग
शीतल-मुख मेरे तट की निस्तल निझरी
छबि-विभावरी
(झ) पेज नंबर 8 पर निष्कर्ष लिखें।
नोट:- यदि व्यक्तित्व या कृतित्व एक पेज से अधिक होगा तो अतिरिक्त पेज 9-10 जोड़ लेंगे।